Sunday, February 24, 2013

दिल्ली दमन दामिनी

नन्हें-नन्हें कदमों से चलते
छोटे-छोटे मासूम ख्वाब
आते हैं दिल वालों(?) की दिल्ली में
पूरे हिंदुस्तान से
इस बार आया था
बलिया के किसी गाँव से

ख्वाबों की दिल्ली
ख्वाब .......................
अपनी एक पहचान और पता ढूंढने
अक्षर के धाम में कुछ मांगने
क़ुतुब मीनार को छूकर देखने
संसद की दीर्घा में बैठने
और इंडिया गेट पर शहीदों को याद करने
जिन्होंने अपना आज दिया
हमारे बेहतर कल के लिए

अक्सर टूट जाते हैं कभी काले शीशे वाली बसों में
बड़ी सी मोटरकार की पिछली सीट पर
कालेज के कैम्पस में
और कोलतार से काली चिकनी सडकों पर
लाल पीली हरी बत्तियों की
आँखों के सामने
तब किसी दामिनी के ख्वाब सवाल करते हैं
पूरे हिंदुस्तान से
गुस्से और हताशा से बंधी मुट्ठियों में
हजारों-हज़ार
मोम बत्तियां थामे
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?